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श्रु०१, अ०६, उ०१ गाथा ३
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सूत्रकृतांग-सूची
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पंडित वीर्य बालजीव का सकर्म वीर्य समाप्त, पंडित का अकर्म वीर्य प्रारंभ बंधन मुक्त साधक द्वारा कर्म बंधन का छेदन रत्नत्रय की साधना से मोक्ष, बालवीर्य से दुःख और अशुभ
विचारों की वृद्धि १२-१३
उच्चपद और स्वजन सम्बन्ध की अनित्यता अममत्व और आर्यधर्माचरण के लिए उपदेश गुरु निर्दिष्ट धर्म का आचरण, पाप कर्मों का प्रत्याख्यान आयु के अंतिम क्षणों में संलेखना करना कूर्म के अंग संकोच की भाँति पापकर्मों का संकोच करना शरीर, मन और इन्द्रियों का निग्रह, भाषादोष का असेवन कषाय विजय का उपदेश अहिंसा, सत्य और अस्तेय धर्म है अहिंसा संवर का उपदेश पापकर्मों का त्रिकरण से निषेध असम्यग्दर्शी वीर पुरुषों का दान और तप कर्मबंध का हेतु है सम्यग्दर्शी वीर पुरुषों का दान और तप कर्मक्षय का हेतु है पूजा-प्रतिष्ठा के लिये किया गया तप, तप नहीं
तप को गुप्त रखने का उपदेश. आत्म प्रशंसा निषेध २५ अल्पभोजन, अल्पभाषण, क्षमा, अलोभ, इन्द्रियदमन और अना
सक्ति का उपदेश मन, वचन और काया का निग्रह, मोक्ष पर्यन्त परीषह सहने का उपदेश नवम धर्म अध्ययन,
प्रथम उद्देशक गाांक
धर्म स्वरूप की पृच्छा और उपदेश २-३ सभी जातियों के मनुष्य परिग्रही, हिंसक एवं विषय लोलुप हैं
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