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सूत्रकृतांग-सूची
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गाथांक
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सरस आहार के लिये दाता की प्रशंसा न करना
दाता का प्रशंसक, पार्श्वस्थ एवं कुशील है उसका संयम निस्सार है
श्रु० १, अ०८, उ० १ गाथा ८
अज्ञात कुल की भिक्षा लेने का विधान, पूजा-प्रतिष्ठा के लिये तपश्चर्या न करना. शब्द रूप आदि में आसक्ति न रखना संग परित्याग, सहिष्णु, रत्नत्रय की साधना, अनासक्ति एवं अभयदान के सम्बन्ध में उपदेश, समभाव से संयम पालन का उपदेश
संयम निर्वाह के लिये आहार. पाप-निवृत्ति, उपसर्ग-सहनसंयम व मोक्ष रुचि कर्म शत्रु का दमन
उपसर्ग सहन और राग-द्वेष की निवृत्ति से सर्वथा कर्मक्षय एवं मोक्ष
अष्टम वीर्य अध्ययन
प्रथम उद्देशक
वीर्य के दो भेद, वीर्य का भावार्थ कर्मवीर्य और अकर्म वीर्य
प्रमाद कर्म और अप्रमाद अकर्म
प्रमाद बालवीर्य, अप्रमाद पंडितवीर्य
बाल-वीर्य
बाल जीव का शस्त्राभ्यास और मंत्र साधना
सुख के लिये मायावी जीवों द्वारा धन और प्राणों का हरण असंयमी की मानसिक हिंसा
हिंसा से वैर परम्परा की वृद्धि
साम्परायिक कर्म - बालजीवन के अनेक पापकृत्य
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