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________________ भगवती-सूची २८६ श०३ उ०१ प्र०१५ ६ क- धरण-नागकुमारेन्द्र आदि की विकुर्वणा के सम्बन्ध में अग्निभूति की जिज्ञासा ख- भ० महावीर द्वारा धरणेन्द्र आदि की विकुर्वणा का वर्णन ग- दक्षिण के इन्द्रों के सम्बन्ध में अग्निभूति की जिज्ञासा और भ० महावीर द्वारा समाधान घ- उत्तर के इन्द्रों के सम्बन्ध में वायुभूति की जिज्ञासा और भ० महावीर द्वारा समाधान क- शक्रेन्द्र की विकुर्वणा शक्ति के सम्बन्ध में अग्निभूति की जिज्ञासा ख- भ० महावीर द्वारा शकेन्द्र की ऋद्धि का वर्णन ग- शक्रेन्द्र आदि की विकुर्वणा शक्ति का वर्णन ११ क- भ० महावीर का शिष्य तिष्यक शर्केन्द्र के सामानिक देवरूप में उत्पन्न ख- तिष्यक देव की विकुर्वणा शक्ति । १२ क- शकेन्द्र के अन्य सामानिक देवों की विकुर्वणा शक्ति ख- शकेन्द्र के त्रायस्त्रिश देव की विकुर्वणा शक्ति ग- शकेन्द्र के लोकपाल देव की विकूर्वणा शक्ति घ- शक्रेन्द्र के अग्रमहीषियों की विकुर्वणा शक्ति १३ क- ईशानेन्द्र की विकुर्वणा शक्ति के सम्बन्ध में वायुभूति की जिज्ञासा ___ ख- भ० महावीर द्वारा ईशानेन्द्र की विकुर्वणा का वर्णन १४ क- भ० महावीर का शिष्य कुरुदत्त ईशानेन्द्र के सामानिक देव रूप में उत्पन्न ख- कुरुदत्त सामानिक देव की विकुर्वणा शक्ति । ग- अन्य सामानिक देव त्रायस्त्रिश लोकपाल और अग्रमहीषियों की विकुर्वणा शक्ति १५ क- भ० महावीर का मोका नगरी से विहार ख- भ० महावीर का राजगृह में पदार्पण ग- भ० महावीर की वंदना के लिने ईशानेन्द्र का आगमन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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