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________________ भगवती-सूची २८५ श०३ उ०१ प्र०८ ७४-७५ क- रत्नप्रभा के घनोदधि आदि से धर्मास्तिकाय का स्पर्श - इसी प्रकार धर्मास्तिकाय और लोकाकाश , तृतीय शतक प्रथम चमर विकुर्वणा उद्देशक १ गाथा (दश उद्देशकों के विषय) २ मोका नगरी में भ० महावीर का पदार्पण ३ क- चमरेन्द्र की विकुर्वणा के सम्बन्ध में अग्निभूति की जिज्ञासा ख- भ० महावीर द्वारा चमरेन्द्र की ऋद्धि का वर्णन ग- चमरेन्द्र की वैक्रिय करने की पद्धति का संक्षिप्त परिचय घ- चमरेन्द्र की वैक्रिय शक्ति का वर्णन ४ चमरेन्द्र के सामानिक देवों की विकुर्वणा शक्ति ५ चमरेन्द्र के त्रास्त्रिशक देवों की विकुर्वणा शक्ति ६ चमरेन्द्र की अग्रमहीषियों की विकूर्वणा शक्ति ७ क- अग्निभूति का वायुभूति के समीप गमन ख- वायुभूति के सामने अग्निभूति द्वारा चमरेन्द्र आदि की विकुर्वणा शक्ति का वर्णन ग- अग्निभूति के कथन के प्रति वायुभूति की अश्रद्धा घ- वायुभूति का भ० महावीर के समीप गमन ङ- भ० महावीर द्वारा अग्निभूति के कथन का समर्थन च- वायुभूति का अग्निभूति से क्षमायाचन . . ८ क- अग्निभूति और वायुभूति का भ० महावीर के समीप सह आगमन ख- वैरोचनेन्द्र के सम्बन्ध में वायुभूति की जिज्ञासा ग- भ० महावीर द्वारा चमरेन्द्र आदि के समान वैरोचनेन्द्र आदि की विकुर्वणा शक्ति का वर्णन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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