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________________ ३४८ भगवती-सूची श०१२ उ०८-६ प्र०११० ७० क- लोक के सर्व आकाश प्रदेशों में सर्व जीवों का जन्म-मरण ख- अजाव्रज का उदाहरण ७१-८२ चौवीस दण्डक में सर्व जीवों का जन्म-मरण ८३ सर्व जीव, सर्व जीवों के माता-पिता आदि सम्बन्धी हो चुके हैं सर्व जीवों के शत्रु आदि हो चुके हैं ८५ सर्व जीव सर्व जीवों के राजा आदि हो चुके हैं सर्व जीव सर्व जीवों के दास आदि हो चुके हैं अष्टम नाग उद्देशक ८७-६१ क- महधिक देव की सर्प हाथी मणी और वृक्षरूप में उत्पत्ति ख- सर्प आदि रूप में अर्चा-पूजा ग- सर्प आदि का एक भव करके मोक्ष में जाना -६२-६४ वानर आदि, सिंह आदि और काक आदि की नरक में उत्पत्ति नवम देव उद्देशक पांच प्रकार के देव भव्य द्रव्य देव कहने का हेतु नरदेव कहने का हेतु धर्मदेव कहने का हेतु देवाधिदेव कहने का हेतु भावदेव कहने का हेतु भव्य द्रव्य देव की उत्पत्ति १०२-१०४ नरदेव की उत्पत्ति १०५ धर्मदेव की उत्पत्ति १०६-१०८ देवाधिदेव की उत्पत्ति भवदेव की उत्पत्ति ११० भव्य द्रव्य देव की स्थिति WWWW ० ० ० १०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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