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________________ 'श्रु०१ अ०६ ५२१ विपाक-सूची अष्टम नन्दिवर्धन अध्ययन [मच्छीमार के व्यवसाय का फल] २६ क- उत्थानिका, सूर्यपुर, सूर्यावंतसक उद्यान. सूर्यदत्त राजा ख-मच्छीमारों का मोहल्ला, समुद्रदत्त मच्छीमार, समुद्रदत्ता भार्या सूर्यदत्त पुत्र ग- भ० महावीर का समवसरण. गौतम गणधर का भिक्षाचर्या से लौटते समय मच्छीमारों के मोहल्ले के समीप एक रुग्ण मच्छीमार को रक्त वमन करते हुए देखना घ- पूर्व भव पृच्छा. जम्बूद्वीप. भरत. नन्दिपुर मित्रराजा. महाराजा का सिरिया रसोईया ङ- राजा व राजपरिवार के लिये विविध प्रकार के मांस पकाना स्वयं सिरिया रसोईये की मांसाहार में आसक्ति च- पूर्णायु, मृत्यु, नरक गमन छ- मृतवत्सा समुद्रदत्ता का संतान प्राप्ति के लिये यक्ष प्रजा का ___ संकल्प-यावत्-सूर्य दत्त नाम रखना ज- समुद्रदत की मृत्यु. सूर्यदत का मच्छीमारों का प्रमुख बनना यमुना नदी आदि में मच्छीयाँ पकड़ना भ- मच्छीयाँ पकड़ने के अनेक साधनों का उल्लेख अ- मच्छीयां सुखाना, मच्छीयों के बने हुए विविध भोज्य पदार्थ ट- सूर्यदत के गले में मत्स्य कंटक लगना. चिकित्सा के लिये अनेक प्रयत्न ठ- वेदना व्यथित सूर्यदत्त की पूर्णायु, मृत्यु, नरक गति. भवभ्रमण ड- हस्तिनापुर में सेठ के घर में जन्म. बोधि की प्राप्ति. देश विरती की आराधना. सौधर्म कल्प में उत्पत्ति. च्यवन महाविदेह से मोक्ष. उपसंहार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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