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________________ श्रु० १ अ०६ ५२२ नवम बृहस्पतिदत्त अध्ययन [ ईर्ष्या-द्वेष का फल ] ३० क- उत्थानिका. रोहीडक नगर. पृथ्वी अवतंसक उद्यान. धरण यक्ष वैश्रमण दत्त राजा. श्रीदेवी. पुष्पनन्दी कुमार. दत्त गाथापति. कृष्ण श्री भार्या. देवदत्ता पुत्री ख- भ० महावीर का समवसरण गौतम गणधर की भिक्षा चर्या राजमार्ग में एक स्त्री के सूली दण्ड का दृश्य देखना ग- पूर्व भव पृच्छा. जम्बूद्वीप. भरत. सुप्रतिष्ठ नगर महसेन राजा. अन्तःपुर में धारिणी आदि एक हजार रानिताँ, सोहसेन राज कुमार. पाँच सौ राज्य कन्याओं से पाणिग्रहण. दहेज घ- महसेन राजा की मृत्यु ङ - सिंहसेन की एक श्यामा रानि में अत्यासक्ति, अन्य से विरक्ति. च - श्यामादेवी के प्रति अन्य रानियों का दुर्भाव छ- प्राणरक्षा के लिये श्यामा का सिंहसेन से निवेदन सिंहसेन का आश्वासन ज - कूटागार शाला का निर्माण ४६६ रानियों को कूटागार शाला में बन्द करके जला देना भ सिंहसेन की पूर्णायु-मृत्यु-नरक गति ञ - कृष्ण श्री की कुक्षि में सिंहसेन की आत्मा का आगमन पुत्रि रूप में जन्म, देवदत्ता नाम रखना विपाक - सूची ट- पुष्यनन्दी राजकुमार के लिये वैश्रमपादत्त राजा द्वारा देवदत्ता की याचना देवदत्ता से पुष्यनन्दी का विवाह ठ- वैश्रमण राजा की मृत्यु. पुष्यनन्दी की मातृभक्ति ड- देवदत्ता द्वारा श्री देवी के प्राणों का संहार. पुष्यनन्दी का देव दत्ता के लिये सूली भेदन का आदेश, पूर्णायु, मरण, भव भ्रमण ढ गंगपुर में देवदत्ता की आत्मा का श्रेष्ठी के गृह में जन्म. श्रमणो - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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