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________________ विपाक-सूची ५२३ श्रु०२ अ०१ पासक धर्म की आराधना. समाधिमरण, सौधर्म कल्प में उत्पत्ति महाविदेह से मुक्ति । उपसंहार दशम उम्बरदत्त अध्ययन [वैश्या वृत्ति का फल ३२ क- उत्थानिका-वर्द्धमानपुर, विजय वर्धमान उद्यान, माणिभद्र यक्ष विजयमित्र राजा ख- धनदेव सार्थवाह, प्रियंगु भार्या, अंजू पुत्री ग- भ० महावीर का समोसरण. भ० गौतम की भिक्षाचर्या, अशोक वाटिका में एक अतिरुग्ण स्त्री का करुण क्रंदन करते हुए देखना घ- पूर्वभव की जिज्ञासा. जम्बूद्वीप. भरत. इन्द्रपुर. इन्द्रदत्त राजा पृथ्वी श्री गणिका ङ- पृथ्वी श्री गणिका की पूर्णायु. मृत्यु. भवभ्रमण च- पृथ्वी श्री की आत्मा का अंजुश्री के रूप में जन्म छ- वैश्रमण राजा का अंजूश्री से विवाह. अंजूश्री के योनीसूल के वेदना. चिकित्सा की असफलता. अशोक वाटिका में अंजूश्री का रोदन ज- अंजूश्री का भवभ्रमण. सर्वतोभद्र नगर में सेठ के घर जन्म सम्यक्त्व की प्राप्ति. प्रव्रज्या. सौधर्म में उत्पति. च्यवन. महाविदेह से मुक्ति । प्रथम दुःख विपाक श्रुत स्कंध का उपसंहार द्वितीय सुखविपाक शुतस्कंध ३३ क- उत्थानिका. दस अध्ययनों के नाम प्रथम सुबाह अध्ययन ख- उत्थानिका. हस्तिशीर्ष नगर, पुष्प करण्ड उद्यान. कृतवन माल प्रिय यक्ष का यक्षायतन. अदीन शत्रुराजा. अन्तःपुर में धारिणी देवी आदि एक हजार रानियां ग- धारिणी कासिंह स्वप्न. सुबाहु कुमार का जन्म. संवर्धन. अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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