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________________ विपाक-सूची ५२४ श्रु०२ अ०३ घ- पांच सौ कन्याओं से पाणिग्रहण ङ- भ० महावीर का समवसरण. सुबाहु कुमार का धर्मकथा श्रवण. गृहस्थधर्म आराधन की प्रतिज्ञा च- सुबाहु के पूर्वभव की जिज्ञासा. जम्बूद्वीप. भरत. हस्तिनापुर. सुमुख गाथापती. सहस्राम्रवन. पांचसो मुनियों के साथ स्थविरों का आगमन छ- महा तपस्वी सुदत्त अणगार को शुद्ध आहार दान, पांच दिव्यों की वर्षा ज- भ० महावीर का समवसरण, झ- सुबाहु कुमार का अष्टमतप. पौषध. प्रव्रज्या लेने का संकल्प ज- भ० महावीर के समीप प्रव्रज्या ग्रहण. भ० महावीर का विहार इग्यारह अंगों का अध्ययन, तपश्चर्या. श्रमण जीवन. एक मास की संलेखना. सौधर्म में उत्पति ट- प्रत्येक देव भव के पश्चात् प्रत्येक मनुष्य भव में प्रव्रज्या ग्रहण करना ठ- क्रमश: सर्वाथसिद्ध में उत्पति, च्यवन, महाविदेह से शिव साधना-उपसंहार । द्वितीय भद्रनंदि अध्ययन ३४ क- उत्थानिका, ऋषभपुर, स्तूप करण्डक उद्यान, धन्य यक्ष धनावह राजा, सरस्वती देवी, भद्रनंदी कुमार, शेष सुबाहु के समान, उपसंहार । विशेष पूर्व भव-महाविदेह, पुण्डरिकिणी नगरी, युगबाहू तीर्थंकर को दान देना तृतीय सुजात अध्ययन ३५ क- उत्थानिका, वीरपुर, मनोरम उद्यान. वीर कृष्ण मित्र राजा, श्री देवी, सुजात कुमार, बल श्री प्रमुख पांच सो कन्याओं से पाणि ग्रहण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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