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आचारांग सूची
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सूत्र संख्या =
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श्रु०२, अ० २ उ०२ सू०७७
जिस उपाश्रय में गृहस्थ रहता हो, ऐसे उपाश्रय में ठहरने
का निषेध
ऐसे उपाश्रय में कहल आदि का उपद्रव होता है ऐसे उपाश्रय में अग्निकाय का आरंभ होता है अलंकृत तरुणियों को देखने से मन विकृत होता है
ऐसे उपाश्रय में ओजस्वी पुत्र प्राप्ति निमित्त मैथुन के लिए स्त्रियाँ निमंत्रण देती हैं
द्वितीय उद्देशक
ऐसे उपाश्रय में भिक्षु के स्वेद की दुर्गंध के प्रति शौचवादि गृहस्थ को घृणा होती है
ऐसे उपाश्रय में गृहस्थ या भिक्षु के निमित्त बने हुए सरस भोजन पर भिक्षु का मन चलता है।
ऐसे उपाश्रय में भिक्षु के निमित्त काष्ठ भेदन और अग्नि का आरंभ होता है
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ऐसे उपाश्रय में मलमूत्रादि से निवृत्त होने के लिए रात्रि में द्वार खोलनेपर चोरों के घुसने की संभावना अथवा भ्रम से साधु को चोर मान लेना, चोर के संबंध में भाषा का विवेक
जीव-ज
-जन्तुवाला तृण पलाल आदि जिस उपाश्रय में हो, उसमें ठहरने का निषेध
जीव-जन्तु रहित तृण, पलाल आदि जिस उपाश्रय में हो उसमें ठहरने का विधान
जिन स्थानों में स्वधर्मी अधिक आते हों उन स्थानों में अधिक ठहरने का निषेध
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