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________________ समवाय २५ २२५ ४ इन्द्रवाले देवस्थान ५ सूर्य के उत्तरायण होने पर पौरुषी छाया का परिमाण ६ गंगा नदी के प्रवाह का विस्तार ७ सिन्धु नदी के प्रवाह का विस्तार रक्ता नदी के प्रवाह का विस्तार ९ रक्तवती नदी के प्रवाह का विस्तार १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ तमस्तमा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ कुछ असुर कुमारों की स्थिति ४ सोधर्म - ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति ५ नीचे के तीसरे ग्रैवेयकों की स्थिति ६ नीचे के दूसरे ग्रैवेयकों की स्थिति १ उक्त ग्रैवेयकों का श्वासोच्छ्वास काल १ उक्त ग्रैवेयकों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की चौवीस भवसे मुक्ति सूत्र संख्या १८ पच्चीसवां समवाय १ पाँच महाव्रत की भावना २ भ० मल्लीनाथ की ऊंचाई ३ सर्व महान् वैताढ्य पर्वतों की ऊंचाई और उद्वेध ४ शर्करा प्रभा के नरकावास Jain Education International समवायांग- सूची ५ चूलिका सहित आचारांग के अध्ययन ६ अपर्याप्त मिथ्यादृष्टि विकलेन्द्रिय में बंधने वाली नाम कर्म की प्रकृतियाँ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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