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भगवती-सूची
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श०१ उ०३ प्र०१२५
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झ- चरक परिव्राजकों का उपपात अ- किल्विषिकों ट- तिर्यंच योनिकों , , ठ. आजीविकों ड- आभीयोगिकों (मंत्रादि विद्यावालों) का उपपात ढ- दर्शनभ्रष्ट स्वलिगियों का उपपात
असंज्ञी आयुष्य १०६ चार प्रकार का असंज्ञि आयुष्य असंज्ञी जीवों के चार गति का आयुबंध और चारों गतियों
में उत्पन्न असंज्ञी जीवों की स्थिति , आयुबंध का अल्प-बहुत्व तृतीय काँक्षा प्रदोष उद्देशक ११२ क्रिया निष्पाद्य कांक्षामोहनीय कर्म
कांक्षामोहनीय कर्म देश या सर्वकृत (चोभंगी) ११४ चौवीस दण्डकों में कांक्षामोहनीय कर्म देशकृत या सर्वकृत
जीवों द्वारा कालिक कांक्षामोहनीय कर्म का बंधन
जीवों द्वारा त्रैकालिक कांक्षामोहनीय कर्म देशकृत या सर्वकृत ११७ जीवों का कांक्षामोहनीय कर्म वेदन
११८ कांक्षामोहनीयकर्म के कारण ११६-१२० सर्वज्ञ वाणी पर श्रद्धा करने वाला आराधक १२१ अस्तित्व नास्तित्व का परिणमन
अस्तित्व नास्तित्व १२२ परिणमन के दो भेद
भ० महावीर के अस्तित्व-नास्तित्व के सम्बन्ध में गौतम का प्रश्न तथा भगवान का उत्तर
अस्तित्व-नास्तित्व में गमनीय (प्र० १२१-१२२ के समान) १२५ भ० महावीर के सम्बन्ध में 'गमनीय' का प्रश्नोतर
(प्रश्नोत्तर १२३ के समान)
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