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________________ भगवती-सूची २६६ श० १ उ०२ प्र०१०८ m १०० ० ० ० mm ख- आहार में समानता न होने का कारण १४-६५ क- मनुष्यों में समान क्रिया न होने का कारण ख- आयु और उत्पन्न होना नैरयिकों के समान . ६६ क- व्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों में आहारादि नैरयिकों के समान किन्तु वेदना में भिन्नता ख- व्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिकों में वेदना समान न होने का कारण चौवीस दण्डकों में सलेश्य जीवों के आहारादि की समा नता और भिन्नता लेश्या वर्णन, चार प्रकार का संसार संस्थान काल नैरयिकों तिर्यंचों , " " मनुष्यों और देवों नैरयिकों के संसार संस्थान काल का अल्प-बहुत्व तिर्यंचों के ,, १०५ मनुष्य और देवों के , चारों गतियों के संसार संस्थान काल का अल्प-बहुत्व १०७ जीव की अंतक्रिया (मुक्ति) उपपात १०८ क- देवगति पाने योग्य असंयत जीवों का उपपात ख- अखण्ड संयमियों का उपपात ग- खंडित , , ,, घ- अखण्ड संयमासंयमियों (श्रावकों) का उपपात ङ- खंडित संयमासंयमियों (श्रावकों) का उपपात च- असंज्ञी-अमैथुनिक सृष्टि-जीवों ,, ,, छ- तापसों का उपपात ज- कांदर्पिकों का , १०३ १०४ ० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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