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प्रज्ञापना- सूची
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मनुष्य की मनुष्य रूप में संस्थिति
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देव की देव रूप में सिद्ध को सिद्ध रूप में ख- चतुर्गति प्राप्त जीवों की अपर्याप्त एवं पर्याप्त रूप में संस्थिति ग- सइन्द्रिय- यावत् — अइन्द्रिय की अइन्द्रिय रूप में संस्थिति
सइन्द्रिय — यावत् —
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घ- सर्व इन्द्रिय अपर्याप्त का अपर्याप्त रूप में और सर्व इन्द्रिय पर्याप्त की पर्याप्त रूप में संस्थिति
ङ- सकाय की सकाय रूप में और अकाय की अकाय रुप में संस्थिति
पद १६ सूत्र १
च - सूक्ष्म की सूक्ष्म रूप में और बादर की बादर रूप में संस्थिति छ- सुयोगी की सयोगी रूप में और अयोगी की आयोगी रूप में संस्थिति
ज - सवेदी की सवेदी रूप में और अवेदी की अवेदी रूप में संस्थिति - सकषाय की सकषायी रूप में और अकषायी की अकषायी रूप में संस्थिति
ञ - सलेशी की सलेशी रूप में और अलेशी की अलेशी रूप में स्थिति
ट. दृष्टि, ज्ञान, दर्शन, संयत, साकारानाकारोपयुक्त, आहारक अनाहारक, भासक अभासक, परित्त अपरित्त, पर्याप्त अपर्याप्त सूक्ष्म ३, संज्ञी ३, भवसिद्धिक ३, धर्मास्तिकाय - यावत्अध्दा समय, चरम - अचरम, अधिकारों की संस्थिति
एकोनविंशतितम सम्यक्त्व पद
क- चौवीस दण्डक में तीन दृष्टि
ख- सिद्धों में एक दृष्टि
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