SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 687
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पद २० सूत्र १२ ५५९ प्रज्ञापना-सूची विंशतितम अन्तक्रिया-पद अधिकारों के नाम १ क- जीव अन्तक्रिया करता है, नहीं भी करता है ख- चौवीस दण्डकों में अन्तक्रिया का कथन ग- प्रत्येक दण्डक की प्रत्येक दण्डक में अन्तक्रिया २ चौवीस दण्डक में अनन्तरागत या परम्परागत की अन्तक्रिया चौवीस दण्डग में अनन्तरागतों की एक समय में जघन्य उत्कृष्प अन्तक्रिया । ४-११ क चौवीस दण्डक में उद्वर्तन, अनन्तर, उत्पत्ति ख- केवलि प्रज्ञप्त धर्म का श्रवण ग- बोधि, श्रद्धा, प्रतीति, रुचि घ- मतिज्ञानादि की प्राप्ति ङ- शीलव्रत, गुणवत, विरमण व्रत की आराधना च- अवधि ज्ञान की प्राप्ति, छ- मुण्डित होना ज- चक्रवति, बलदेव, वासुदेव, माण्डलिक, चक्ररत्नादि में उत्पत्ति झ- तीर्थंकर पद की प्राप्ति का कथन १२ क- असंयत भव्य द्रव्य देव ख- अविराधित संयम वाले ग- विराधित संयमवाले, घ- अविराधित-देश विरतिवाले ङ- विराधित-देश विरतिवाले च- असंजी छ- तापस ज- कांदपिक झ- चरकादिक परिव्राजक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy