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________________ प्रथम " अंतिम स्थानांग-सूची १२२ श्रु०१, अ०३ उ०१ सू० १३४ १३२ तेईस दंडकों में प्रथम तीन लेश्या . क- प्रथम वीस दंडकों में प्रथम तीन लेया ख- बीसवें-इक्कीसवें " " अंतिम " ग- बाईसवें दण्डक " घ- चौवीसवें " " क- तीन कारणों से तारा स्वस्थान से चलित होते हैं " देवता विद्युत् के समान चमकते हैं ग- " देवता गर्जना करते हैं १३४ क- तीन कारणों से अंधकार होता है उद्योत देवताओं में अंधकार " उद्योत देवता मनुष्य लोक में आते हैं देवता कोलाहल करते हैं देव समूह आता है सामानिक देव मृत्युलोक में आते हैं त्रायस्त्रिशक " लोकपाल अग्रमहिषियां " आती हैं परिषद के देव " आते हैं देव सेनाधिपति " " आत्म रक्षक देव " " देव अपने आसन से उठते हैं देवताओं का आसन कम्पित होता है देवता सिंहनाद करते हैं देवता वस्त्र वृष्टि करते हैं 팬 위 킨 뒤 엔 엔 연 면 왼 된 위 위 열 원 위 흰 원부 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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