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________________ ७०१ to me is 6 वक्ष० ४ सूत्र ८८ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची ग- यमक पर्वतों के मूल, मध्य और ऊपर का विष्कम्भ घ , के मूल, और ऊपर की परिधि ङ. का संस्थान च- पद्मवर वेदिका और वन खण्डों का वर्णन छ- प्रासादावतंसकों की ऊँचाई, विष्कम्भ और सिंहासन परिवार ज- यमक देवों के आत्म रक्षक देव भ- यमक नाम होने का हेतु अ- यमक देव और उनके सामानिक देव ट- यमक पर्वत शास्वत नाम ठ- यमका राजधानियों का स्थान का आयाम-विष्कम्भ की परिधि के प्राकारों की ऊँचाई के प्राकारों का मूल, मध्य, और ऊपर का विष्कम्भ थ. कपिशीर्षकों की ऊँचाई और बाहल्य द- यमिका राजधानियों के द्वार ध- द्वारों की ऊँचाई और विष्कम्भ न- चार बनखण्डा का वर्णन प- प्रासादावतंसकों का वर्णन फ- उपकारिकालयनों का आयाम, विष्कम्भ, परिधि और बाहल्य ब- प्रत्येक के पद्मवर वेदिका और वनखण्ड का वर्णन भ- प्रासादावतंसकों का परिमाण म- सिंहासन परिवार य- प्रासाद पंक्तियां र- सुधर्मासभा, मुखमण्डप, प्रेक्षाधर, मण्डप, मणिपीठिका, स्तूप, जिन प्रतिमा, चैत्यवृक्ष, मणिपीठिका. महेन्द्र ध्वज, मनो = Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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