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________________ प्रज्ञापना-सूची ६६८ पद ३१-३३ सूत्र ७ घ- चौवीस दण्डक में साकार-अनाकार पश्यता २ चौवीस दण्डक में साकार-अनाकार दर्शी ___क- केवली का एक समय में एक उपयोग ख- ईषत्प्राग्भारा-यावत्-रत्नप्रभा के जानने और देखने का भिन्न-भिन्न समय ग- परमाणु पुद्गल-यावत्-अनंत प्रदेशी स्कंध के जानने और देखने का भिन्न-भिन्न समय १ एकत्रिंशत्तम संज्ञी पद क- चौवीस दण्डक में संज्ञी-असंज्ञी ख- सिद्ध नो संज्ञी नो असंज्ञी द्वात्रिंशत्तम संयत पद १ क- सामान्य जीव-संयत-यावत्-नो संयत-नो असंयत-नो संयता. संयत ख- चौवीस दण्डक में संयत असंयत संयतासंयत १ तयस्त्रिशत्तम-अवधिपद दस अधिकारों के नाम क. अवधिज्ञान ख- दो को भवप्रत्ययिक ग. दो को क्षायोपशमिक नारकों-यावत्-देवों के अवधिज्ञान का क्षेत्र नारकों-यावत्-देवों के अवधिज्ञान का संस्थान नारक-यावत्-देव अवधि मध्यवर्ती, स्पर्द्ध कावधि और विछिन्नावधि की विचारणा नारक-यावत्-देवों का देशावधि और सर्वावधि २-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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