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________________ निशीथ-सूची १२ १३-१४ १५. १६-२४ २५-२६ २७-३२ ३३-३५ ३६-३७ ३८ ३६ ४०-५० १-१४ १५-११० क ख उ० १७ सूत्र १३६ वन-वासियों तथा वनचरों से ( यात्रियों) से आहार लेना संयमी को असंयमी और असंयमी को संयमी कहना संयमियों के गण से असंयमियो के गण में जाना १३५-१३६ कलह करके आये हुए श्रमण-श्रमणियों से व्यवहार करना कुमार्ग या कुप्रदेश में जाना निन्द्यकुलों से व्यवहार रखना निषिद्ध स्थानों पर आहार करना अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ स्त्रियों के साथ भोजन करना आचार्य उपाध्याय के शय्या संस्तारक को ठुकराना प्रमाण से अधिक उपकरण रखना 33 शरीर का मस्तक ढकवाये निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थी के पैरों का परिकर्म करावे के शरीर का का मस्तक ढ़कवाये १२१ निर्ग्रन्थ का निर्ग्रन्थ को स्थान न देना १२२ निर्ग्रन्थी का निर्ग्रन्थी को स्थान न देना १२३-१३१ आहार सम्बन्धी नियमों का भंग करना 17 १३२ पानी १३३ अपने आपको आचार्य पद के योग्य कहना १३४ मनोविनोद के लिये गायन आदि कार्य करना विविध वाद्य सुनना 37 77 निषिद्ध स्थानों पर मल मूत्र डालना सतरहवाँ उद्देशक कुतूहल के लिये कोई कार्य करना अन्यतीर्थी अथवा गृहस्थ से कार्य करवाना निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थ के पैरों का परिकर्म करावे 31 Jain Education International 33 71 ८८८ 77 "" 33 37 11 37 For Private & Personal Use Only "" www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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