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________________ उ० १६ सूत्र ११ २८-२६ ३०-३७ ३८-४१ ४२-५० १-४५ १-४ ५- १२ 73 चौदहवाँ उद्देशक पात्र - सम्बन्धी नियमों का भंग करना पन्द्रहवाँ उद्देशक भिक्षु भिक्षुणी को कठोर शब्द कहना तथा उनके साथ अप्रिय व्यवहार करना सचित फल - अग्नि आदि से नहीं पकाया हुआ अखण्ड फल खाना १३-६५ क- अन्यतीर्थी अथवा गृहस्थ से पैरों का संस्कार करवाना शरीर ६६-७४ ७५-७६ ७७-७८ ७६-६८ ख ग १-३ ४-११ अन्यतीर्थी या गृहस्थ को धातुएँ या खजाना बताना किसी पदार्थ में प्रतिबिम्ब देखना स्वस्थ होते हुए चिकित्सा कराना पार्श्वस्थ आदि को वन्दना करना की प्रशंसा करना ८८७ " ,, कपड़े आदि से अपना मस्तक ढ़कवाना निषिद्ध स्थानों पर मल मूत्र त्यागना अन्यतीर्थी अथवा गृहस्थ को अन्यतीर्थी अथवा गृहस्थ को लेना पार्श्वस्थ आदि को आहार, वस्त्र, पात्र, रजोहरण देना या उनसे लेना && निषिद्ध वस्त्र लेना १०० - १५४ विभूषा निमित्त किसी भी कार्य का करना सोलहवाँ उद्देशक Jain Education International निशीथ-सूची ," वसति विषयक नियमों का भंग करना सचित इक्षु आदि खाना आहार देना या उनसे लेना वस्त्र पात्र आदि देना या उनसे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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