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________________ सूत्र १५७-१५६ ५६६ जीवाभिगम-सूची ग- पातालकलशों में जीवों और पुद्गलों का चयापचाय. घ. पातालकलशों के तीन भाग ङ- प्रत्येक भाग में वायु और पानी च- अनेक क्षुद्र पातालकलशों के मूल, मध्य ओर उपरिभाग का परिमाण छ- क्षुद्र पातालकलशों में जीवों और पुदगलों का चयापचय ज- प्रत्येक पातालकलश में एक देव, देव की स्थिति झ- प्रत्येक पातालकलश के तीनों भाग में वायु, पानी का अस्तित्व ब- सर्व पातालकलशों की संख्या ट- पातालकलशों में वायु-पानी का घट्टन, स्पंदन, वेलावृद्धि का कारण १५७ तीसमुहूर्त में लवण समुद्र की वेला-वृद्धि व वेला-हानि १५८ क- लवण शिखा की वृद्धि-हानि का परिमाण ख- लवणसमुद्र की बाह्याभ्यन्तर वेला वृद्धि को रोकने वाले नागदेवों की संख्या १५६ क- चार वेलंधर नागराज ख- नागराजों के आवास पर्वत ग- गोस्थूभ वेलंघर नागराज का गोस्तूभ आवास का पर्वत का स्थान, मूल, मध्य और उपरिभाग का परिमाण, पद्मवर वेदिका, वनखण्ड घ. प्रासादावतंसक का परिमाण ङ- गोस्तूभ नाम का हेतु, गोस्तुभ देव, स्थिति, देवपरिवार, गौस्तुभा राजधानी का परिमाण च- शिवक वेलंघर नागराज के दकभास आवास पर्वत की ऊंचाई आदि झ- शंखदेव, शंखा राजधानी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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