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________________ ०२, अ०८. उ० १ सू०१६३ ५३ १६२ सूत्र संख्या ४ १६३ क श्र आचारांग सूची तो शयन करूंगा, अन्यथा उत्कटुक आसन से रात्रि बिताऊंगा ख सप्तम पड़िमा - याचित स्थान में शिला या काष्ठपट होगा तो शयन करूंगा, अन्यथा उत्कटुक आसन से रात्रि बिताऊंगा पड़िमाधारी की निन्दा न करना पाँच प्रकार के अवग्रह द्वितीय चूला अष्टम स्थान अध्ययन प्रथम उद्देशक प्रथम स्थान सप्तकक जीव-जन्तु वाले स्थान' में ठहरने का निषेध शय्यैषणा अध्ययन सूत्र ६४ के ख से च तथा सूत्र ६५ के समान चार स्थान पड़िमा प्रथम पड़िमा -- भीतादि का सहारा लूंगा किन्तु अवयवों का संकोच - प्रसारण नहीं करूंगा द्वितीय पड़िमा - अवयवों का संकोच - प्रसारण करूंगा किन्तु भ्रमण नहीं करूंगा तृतीय पड़िमा - अवयवों का संकोच - प्रसारण नहीं करूंगा और भ्रमणादि भी नहीं करूंगा चतुर्थ पड़िमा -- शरीर का ममत्व छोड़कर स्थिर रहूंगा पड़िमाधारी की निंदा का निषेध - ध्यान करने के लिए याचित स्थान २ - ध्यान करने योग्य स्थान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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