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. प्राचारांग-सूची
५२ श्रु०२, अ०६ उ०२ सू०१६१ छ ऐसे उपाश्रय में से ठहरने से होने वाली हानियां
ज भित्तिचित्र वाले उपाश्रय की आज्ञा न लेना सूत्र संख्या ४
द्वितीय उद्देशक १५६ धर्मशाला आदि स्थानों में पूर्व निवसित श्रमण को अप्रिय
न लगे, इस प्रकार आज्ञा लेकर रहना १६० क आम्रवन में जीव-जन्तु सहित आम्र लेने का निषेध
आम्रवन में प्रासुक आम्र लेने का विधान आम्रवन में अप्रासुक आम्र लेने का निषेध आम्रवन में जीव-जन्तु सहित आम्र-खण्ड लेने का निषेध आम्रवन में अप्रासुक अर्ध प्रासुक आम्र-खण्ड लेने का निषेध आम्रवन में प्रासुक आम्र-खंड लेने का विधान इक्षु वन में अप्रासुक इक्षु लेने का निषेध इक्षु वन में प्रासुक इक्षु लेने का विधान इक्षु वन में प्रासुक इक्षु-खंड लेने का विधान लशुन वन के तीन विकल्प, आम्रवन के समान सात अवग्रह पडिमा प्रथम पडिमा-आज्ञा काल पर्यंत ठहरूंगा द्वितीय पडिमा-अन्य के लिए निर्दोष स्थान की आज्ञा लूंगा और उसी में ठहरूंगा। तृतीय पडिमा--अन्य के लिए निर्दोष स्थान की आज्ञा लंगा किन्तु उसमें ठहरूंगा नहीं चतुर्थ पडिमा--अन्य के लिए आज्ञा नहीं लूंगा किन्तु अन्य से याचित उपाश्रय में ठहरूंगा पंचम पडिमा-केवल अपने लिए स्थान की याचना करूंगा, अन्य के लिए नहीं । षष्ठ पडिमा याचित स्थान में शय्या संस्तारक होगा
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