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________________ अ० १६ गाथा ६८ ७६८ उत्तराध्ययन-सूची mr ३१ m a ३० प्रश्न विद्या एवं गृहस्थ गोष्ठी से निवृत्त हूँ अन्य प्रश्नों का उत्तर देने की क्षमता ३२ क्रियावाद की उपासना ३३-५० भरत, सगर, मघव, सनत्कुमार, शान्ति, कुंथु, अर, महापद्म, हरिषेण, जय, दशार्णभद्र, नमि, करकंडू, दुमुख, नग्गई, उदायन, श्वेत, विजय, महबल आदि अनेक राजाओं का पूर्वकाल में प्रव्रजित होना ५१ . धीर पुरुषों का अप्रमत्त विहार जिनवाणी के श्रवण से तीन काल में तिरना उपसंहार- सर्वथा परिग्रह मुक्त की मुक्ति उन्नीस वाँ मृगापुत्र अध्ययन १-८ क- सुग्रीव नगर, बलभद्र राजा, मृगा रानी ख- मृगापुत्र को मुनि दर्शन से पूर्व जन्म की स्मृति ९-१० मृगापुत्र का माता-पिताओं से प्रव्रज्या के लिये अनुमति प्राप्त करना m ११-२३ मृगापुत्र द्वारा भुक्त भोगों का यथार्थ वर्णन २४-४३ माता-पिता द्वारा श्रमण जीवन की कठिनाइयों का प्रतिपादन ४४-७४ मृगापुत्र द्वारा पूर्व वेदित नरक वेदना का वर्णन ७५ माता-पिता द्वारा श्रमण जीवन की असुविधाओं का वर्णन ७६-८३ मृगापुत्र द्वारा मृगचर्या का वर्णन ८४-८७ क- अनुमति प्राप्त मृगापुत्र का गृहत्याग ख- गृह को नाग कंचुक की उपमा ग- परिग्रह को पद-रज (वस्त्र के लगी हुई) की उपमा ८८-६५ क- मृगापुत्र के श्रामण्य जीवन का वर्णन ख- एक मास की संलेखना और शिवपद . ६६-६८ उपसंहार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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