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उत्तराध्ययन सूची
१७ स्वच्छन्द, पर दर्शन प्रशंसक, बार-बार गण बदलने वाला,
दुराचारी
गृहस्थों के कृत्य करनेवाला, विद्योपजीवी
सर्वदा स्वजाति के गृहस्थों से भिक्षा लेने वाला और गृहस्थ के घर में बैठने वाला
उपसंहार --- पंचाश्रव सेवी श्रमणवेषी उभयलोक भ्रष्ट होता है सर्वदोष वर्जित सुव्रत श्रमण उभयलोक का आराधक होता है अठारह वां संयती अध्ययन
१८
१६
२०
२१
१-५ क
७६७
कम्पिलपुर के संयस राजा का शिकार के लिये केसर उद्यान में आना
ख- बाण विद्ध एक मृग का ध्यानस्थ तपोधन अनगार गद्दभाली
के समीप जाकर पड़ना
मृग के पीछे-पीछे राजा का आना
६
७-१० क- राजा का पश्चात्ताप करना
ख- मुनि से क्षमा याचना
११-१८ राजा को मुनि का उपदेश
१६
२०
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२३
२४
२५
२६
२७-२८ पूर्वजन्म का ज्ञान है
२६
अ० १८ गाथा २६
गद्दभाली के समीप राजा संजय का दीक्षित होना संजय मुनि से किसी श्रमण विशेष के कुछ प्रश्न
सर्व प्रथम संजय का पूर्व परिचय व अन्य प्रश्नों का उत्तर देना क्रियावाद आदि चार वादों का सर्वत्र प्रचार व प्रसार है
यह भ० महावीर ने कहा है
पानी और धर्मी की गति
मृषावादी क्रियावादियों से मैं सावधान हूं सर्ववादों का विवेक है और आत्मबोध है
सम्यक् ज्ञानोपासना करता हूँ
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