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स्थानांग-सूची
१०६ श्रु०१, अ०२, उ०२ सूत्र ८० प्रतिज्ञा, प्रायश्चित्त, संलेखना, पादपोपगमन सूत्र संख्या २०
द्वितीय उद्देशक ७७- चौवीस दंडकों में वेदना ७- चौवीस दंडकों में गति, आगति ७६- चौवीस दंडकों में भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक
अनंतरोपपन्नक, परंपरोपपन्नक ,, गति प्राप्त, अगति प्राप्त
प्रथमसमयोत्पन्न-अप्रथमसमयोत्पन्न आहारक, अनाहारक श्वासोच्छास सहित, श्वासोच्छास रहित सेन्द्रिय, अनेन्द्रिय पर्याप्त, अपर्याप्त संज्ञो, असंज्ञी भाषा सहित, भाषा रहित सम्यकदृष्टि, मिथ्यादृष्टि अल्पसंसार भ्रमण वाले, अनंत संसार भ्रमण वाले संख्येय समय की स्थिति वाले
असंख्येय समय की स्थिति वाले ,, सुलभ बोधि, दुर्लभ बोधि ,, , कृष्णपाक्षिक, शुक्लपाक्षिक
, चरिम, अचरिम ८० क- अधोलोक को आत्मा दो प्रकार से जानता है
तिर्यक्लोक ऊर्ध्व लोक , " सम्पूर्ण लोक , ,
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