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________________ सूत्र ४२-४३ ५४१ औपपातिक-सूची अ- प्रवचन निन्हवों की प्रैवेयक देव पर्यन्त उत्पत्ति. ट- इन ग्रैवेयक देवों की स्थिति. परलोक में अनाराधक ठ- अल्पारम्भी-यावत्-देशविरत श्रमणोपासकों की अच्युत कल्प पर्यन्त उत्पत्ति ड- इन देवों की स्थिति. परलोक में आराधक ढ- अनारम्भी-यावत्-नग्नभाव वाले निर्ग्रन्थों की मुक्ति ण- अवशेष शुभकर्मा निर्ग्रन्थों की सर्वार्थ सिद्ध में उत्पत्ति. त- इनकी स्थिति. परलोक में आराधक थ- सर्व कामविरत-यावत्-क्षीण लोभ निग्रंथों की मुक्ति ४२ क- केवल समुद्घात के समय आत्मा का पूर्णलोक से स्पर्श. ख. ,, , , ,, निर्जरा पुद्गलों का पूर्णलोक से स्पर्श ग- छद्मस्थ के अदृष्ट निर्जरा पुद्गल. घ. निर्जरा पुद्गलों को अतिसूक्ष्म सिद्ध करने के लिये गन्ध पुद् गलों का उदाहरण [जम्बूद्वीप का आयाम-विष्कम्भ. परिधि. देवताकी दिव्य गति. गन्ध पुद्गलों का पूर्ण लोक से स्पर्श. छद्मस्थ के अदृष्ट गध पुद्गल] ड- केवली समुद्घात करने का कारण. च- सभी केवलियों का केवली समुद्घात न करना छ- केवली समुद्घात के आठ समय ज- केवली समुद्घात के समय. मन, वचनयोग के प्रयोग का निषेध झ- काययोग के प्रयोग का निश्चित क्रम ब- केवली समुद्घात के आठ समयों में मुक्त होने का निषेध ट- केवली समुद्घात के पश्चात् मन, वचन, काय का प्रयोग ४३ क- सयोगी की मुक्ति का निषेध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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