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________________ जीवाभिगम-सूची ५६२ सूत्र १३४-१३७ १३४ क- विजयद्वार नाम का हेतु ख- विजय देव का परिवार ग- विजय द्वार का शास्वत नाम द्वितीय मनुष्ययोनिक उद्देशक १३५ क- विजया राजधानी का स्थान ' का आयाम-विष्कम्भ ,, , की परिधि १३६ ख- " " के प्राकार की ऊँचाई प्राकार के मुल मध्य और उपरिभाग-विष्कम्भ विजया राजधानी के प्राकार का संस्थान ग- प्राकार के कपिशीर्षक का आयाम-विष्कम्भ और ऊँचाई घ. विजया राजधानी के द्वारों की ऊँचाई और विष्कम्भ - विजया राजधानी के द्वार का वर्णन क- विजया राजधानी के चारों दिशाओं में चार वनखण्ड ख- वनखण्डों का आयाम-विष्कम्भ ग. वनखण्डों में दिव्य प्रासाद घ- प्रासादों में चार महधिक देव ङ- विजया राजधानी के मध्यभाग में उपकारिकालयन च- उपकारिकालयन का आयाम-विष्कम्भ " की परिधि ज- पद्मवर वेदिका, वनखण्ड, सोपान, तोरण झ- मूल प्रासादवतंसक मणिपीठिका, सिंहासन परिवार, अष्टमंगल ज- समीपवर्ती प्रासादों की ऊंचाई, आयाम, विष्कम्भ आदि ट- अन्य पार्श्ववर्ती प्रासादों की ऊँचाई, ,, १३७ क- विजय देव की सुधर्मा सभा ख- सुधर्मा सभा की ऊँचाई, आयाम-विष्कम्भ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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