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________________ सूत्र १३८ ५६३ ग- सुधर्मा सभा के तीन द्वारों की ऊँचाई और विष्कम्भ घ- मुखमण्डपों का आयाम - विष्कम्भ और ऊँचाई ङ - प्रेक्षाघर मण्डपों का आयाम - विष्कम्भ और ऊँचाई च - मणिपीठिकाओं का आयाम - विष्कम्भ और बाहल्य छ - चैत्य स्तूपों का आयाम - विष्कम्भ बाहल्य ज - मणिपीठिकाओं का आयाम - विष्कम्भ और बाहल्य - चार जिन प्रतिमाओं की ऊँचाई ञ - चैत्य वृक्षों की ऊँचाई, उद्वेध, स्कंधों का विष्कम्भ, मध्य भाग, आयाम - विष्कम्भ, उपरिभाग का परिमाण, चैत्यवृक्षों का वर्णन जीवाभिगम सूची ट- मणिपीठिकाओं का आयाम - विष्कम्भ और बाहल्य ठ- महेन्द्र ध्वजाओं की ऊँचाई, उद्वेध और विष्कम्भ ड- नन्दा पुष्करणियों का आयाम - विष्कम्भ और उद्वेध ढ - मनोगुलिकाओं की संख्या - गोमानसिकाओं की संख्या त- मणिपीठिकाओं का आयाम-विष्कम्भ और बाहल्य थ- माणवक चैत्य स्तम्भों की ऊँचाई उद्वेध और विष्कम्भ - जिन शक्थियों का स्थान ध- महा मणिपीठिकाओं का आयाम - विष्कम्भ और बाहल्य न सिंहासन वर्णन प- देवशयनीय वर्णन फ - मणिपीठिकाओं का आयाम विष्कम्भ और बाहल्य ब- महेन्द्रध्वज की ऊँचाई, उद्वेध, विष्कम्भ भ- विजय देव का शस्त्रागार म- शस्त्रों का वर्णन य- सुधर्मा सभा, अष्ट मंगल १३८ क - सिद्धायतन का आयाम, विष्कम्भ और ऊँचाई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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