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________________ उ० २ सूत्र १० ८४६ बृहत्कल्प-सूची आहार ग्रहणषणा रात्रि तथा सन्ध्याकाल में [निग्रंथ-निग्रंथियों के आहार लेने का निषेध । शय्या, संस्तारक ग्रहणैषणा रात्रि तथा सन्ध्याकाल में [निग्रंथ-निग्रंथियों को पूर्व याचित एवं प्रेक्षित शय्या संस्तारक लेने का विधान. वस्त्र पात्र रजोहरण ग्रहणैषणा रात्रि तथा सन्ध्या काल में [निर्ग्रन्थ-निग्रंथियों को वस्त्र पात्र और रजोहरण लेने का निषेध. चुराये हुये वस्त्र पात्र रजोहरण लौटावे तो लेने का विधान. ईया समिति-विहार कल्प रात्रि तथा सन्ध्याकाल में निग्रंथ निग्रंथियों के विहार का निषेध एषणा समिति-आहार गवेषणा सामूहिक भोज में निग्रंथ-निग्रंथियों को आहार के लिये जाने का निषेध संघ व्यवस्था ४६-५० क. रात्रि में तथा सन्ध्या में स्वाध्याय भूमि के निमित्त ख- रात्रि में तथा सन्ध्या में शौच-भूमि के निमित्त निग्रंथ-निग्रंथियों को अकेले जाने का निषेध. ईया समिति विहार कल्प निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों के विहार क्षेत्र की मर्यादा. द्वितीय उद्देशक एषणा समिति-वसति कल्प वसति गवेषणा १-१० क- शाली आदि धान्य वाले स्थान में निग्रंथ-निग्रंथी निवास संबंधी विधि-निषेध ४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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