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श्रु०१, अ०५. उ०४ सू०१५६
१६
आचारांग-सूची .
१५३
वीर्य- आत्म-शक्ति
संयम के चार भांगे १५४ शील आराधना १५५ क आत्मदमन (बाह्य शत्रु आत्म-शत्रु )
परिज्ञा रूप-आसक्ति (हिंसा) मुनि अहिंसा (कर्म) समत्व अहिंसा अनासक्त (स्त्री से विरक्ति) वसुमान् (तपोधन) सम्यक्त्व मुनिधर्म, विरति
सम्यक्त्व (रूक्ष आहार) ङ मुनि संसार-समुद्र उत्तीर्ण है सूत्र संख्या २
चतुर्थ अव्यक्त उद्देशक
अव्यक्त (अगीतार्थ) एकल विहारी १५८ क हित-शिक्षा देने पर कुपित
महामोह कुशल दर्शन, भ० का आशिर्वाद, बाधा न हो
अहिंसा १५६ कर्म (इस भव में भोगने योग्य और प्रायश्चित्त से शुद्ध
होने योग्य कर्म) अप्रमाद
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