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________________ जीवाभिगम-सूची ६०७ सूत्र १७८-१८० १७८ क- मानुषोत्तर पर्वत की ऊंचाई की उद्वेध के मूल का विष्कम्भ के मध्य का" के उपर का" के अन्दर की परिधि के बाहर की परिधि के मध्य की " के उपर की ॥ की पद्मवर वेदिका, वन खण्ड ट- मानुषोत्तर पर्वत नाम होने का हेतु, लोक सीमा का अंकन ठ. लोक सीमा के अनेक विकल्प क- मनुष्य क्षेत्र में चन्द्रादि ज्योतिषी देवों की मण्डलाकार गति ख- इन्द्र के अभाव में सामानिक देवों द्वारा शासन ग- इन्द्र का जघन्य उत्कृष्ट विरहकाल घ- मनुष्य क्षेत्र बाहर के चन्द्रादि ज्योतिषी देवों की एक स्थान स्थिति ङ- इन्द्र के अभाव में सामानिक देवों द्वारा शासन च- इन्द्र का जघन्य उत्कृष्ट विरहकाल १८० क- पुष्करोद समुद्र का संस्थान ख- का चक्रवाल विष्कम्भ ग- की चक्रवाल परिधि के चार द्वार ङ- प्रत्येक द्वार का अन्तर च- पुष्कर वर द्वीप ओर पुष्करवर समुद्र का परस्पर स्पर्श छ- दोनों के जीवों की एक-दूसरे में उत्पत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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