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________________ सूत्र १८१-१८५ . जीवाभिगम-सूची ज- पुष्करोद समुद्र नाम होने का हेतु झ- पुष्करोद समुद्र में चन्द्र-यावत्-तारा अ- वरुणवर द्वीप का संस्था आयाम-विष्कम्भ. परिधि. स्पर्श. जीवोत्पत्ति. नाम हेतु. पद्मवर वेदिका. वनखण्ड वरुणदेव और वरुणप्रभदेव स्थिति वरुणवर द्वीप में चन्द्र-यावत्-तारा ट- वरुणोद समुद्र का वर्णन १८१ क- क्षीरवर द्वीप का वर्णन ख- क्षीरोद समुद्र का वर्णन १८२ क- घतवर द्वीप का वर्णन ख- घृतोद ससुद्र का वर्णन ग- क्षोतवर द्वीप का वर्णन घ- क्षोतोद समुद्र का वर्णन १८३ क- नंदीश्वर द्वीप का वर्णन ख- नंदीश्वर द्वीप में चार अंजनक पर्वत ग- प्रत्येक का आयाम-विष्कम्म आदि । घ- प्रत्येक पर्वत पर सिद्धायतन. द्वार वर्णन. चार देव. स्थिति मुखमण्डप. प्रेक्षाघर मंडप. अखाड़े मणिपीठिकायें. सिंहासन. चैत्यस्तूप. जिन प्रतिमायं. चैत्यवृक्ष. महापुष्करणियां, देव-छंदक १०८ जिन प्रतिमायें. पर्व तिथियों में तथा जिन कल्याणक दिनों में देवों द्वारा अयान्हिका उत्सव का आयोजन, ङ- रतिकर पर्वतों का वर्णन १८४ नंदीश्वरोद समुद्र का वर्णन १८५ क- अरुणद्वीप का वर्णन ख- अरुणोद समुद्र का ग- अरुणावभासद्वीप का वर्णन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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