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________________ श०१ उ०१ प्र०४२ २६५ भगवती-सूची २७ पृथ्वी कायिकों की स्थिति २८ " " का श्वासोच्छवास काल. " कायिक आहारार्थी कायिकों के आहारेच्छा का समय " " आहार के द्रव्य " " " " लेने की दिशा ३२ क- " " में " का परिणमन. शेष प्रश्नोत्तर ७ से १५ के समान ख- अप्काय से वनस्पतिकाय पर्यंत पृथ्वीकाय के समान ३३ स्थिति और श्वासोच्छवास प्रत्येक का भिन्न भिन्न, ३४ क- द्वीन्द्रियों की स्थिति ख- " का श्वासोच्छवास काल ३५ द्वीन्द्रिय आहारार्थी शेष प्रश्नोत्तर ३०-३१ के समान द्वीन्द्रियों के आहार का परिमाण ३७ " " "ग्राह्य अग्राह्य विभाग और उसका अल्पबहुत्व " " "परिणमन " " पूर्व आहृत पुद्गलों की परिणति, शेष प्रश्नोत्तर ७ से १५ के समान ४० क- त्रीन्द्रियों की स्थिति ख- चउरिन्द्रियों " " शेष प्रश्नोत्तर ७ से १५ के समान ४१ क- त्रीन्द्रियों चउरिन्द्रियों के आहार का ग्राह्य-अग्राह्य विभाग और उसका अल्प-बहुत्व. ख- त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय के आहार का परिणमन “४२ क- पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की भिन्न-भिन्न स्थिति ख- उच्छ्वास की विभिन्न मात्रा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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