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________________ श०१ उ०१ प्र० ५६ २६६ भगवती-सूची ग- पंचेन्द्रिय तियंचों के आहार का समय शेष प्रश्नोत्तर ४०-४१ के समान ४३ क- मनुष्यों की भिन्न-भिन्न स्थिति ख- उच्छ्वास की विभिन्न मात्रा ग- मनुष्यों के आहार का समय घ- " " " " परिणमन, शेष प्रश्नोत्तर ७ से १५ के समान ४४ क- व्यंतर देवों की भिन्न-भिन्न स्थिति ख- शेष प्रश्नोत्तर २४, २५, २६ के समान ४५ क- ज्योतिषी देवों की भिन्न-भिन्न स्थिति ख- " " का श्वासोच्छ्रावास काल ग- " " के आहार का समय शेष प्रश्नोत्तर ७ से १५ के समान ४६ क- वैमानिक देवों की भिन्न-भिन्न स्थिति ख- " " का श्वासोच्छवास काल ग- " " के आहार का समय भिन्न-भिन्न शेष प्रश्नोत्तर ७ से १५ के समान आत्मारम्भ आदि ४७ आत्मारंभी, परारंभी, उभयारंभी और अनारंभी जीव ४८ जीवों का आत्मारंभी आदि होना युक्ति संगत ४९-५२ चौवीस दण्डकों में आत्मारम्भ आदि ५३ सलेश्य जीवों में आत्मारम्भ आदि ज्ञानादि ५४-५५ ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और संयम का इह भव, परभव, और उभयभव में अस्तित्व या नास्तित्व असंवृत अनगार असंवृत अनगार के निर्वाण का निषेध ५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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