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________________ ४४ भगवती-सूची २६७ श०१ उ०२ प्र० ६८ प " " " दृढकर्म बन्धन, संवृत अनगार ५८ संवत अनगार का निर्वाण ५६ " " के सिथिल कर्म बंधन. असंयत जीव ६०-६१ असंयत अव्रत जीवों की देवगति और उसके कारण व्यंतरदेव ६२ क- व्यंतर देवों के रमणीय देव लोक, ख- ' " की स्थिति द्वितीय दुःख उद्देशक उत्थानिका जीव का स्वयंकृत दुःख वेदन, (एक जीव की अपेक्षा) " " का कारण ख- चौवीस दण्डकों में ----जीव का स्वयंकृत दु:ख वेदन ६६ जीवों का स्वयंकृत दुःख वेदन (बहुत जीवों की अपेक्षा) ६७ क- जीवों के स्वयंकृत दुःख वेदन का कारण ख- चौवीस दण्डकों में जीवों का स्वयंकृत दुःख वेदन श्रायुवेदन ६८ क- जीव का स्वयंकृत आयुवेदन, (एक जीव की अपेक्षा) ख- " " " " " का कारण ग- चौवीस दण्डकों में स्वयंकृत आयुवेदन घ- जीवों का स्वयंकृत आयुवेदन (बहुत जीवों की अपेक्षा) हु.. " " " " का कारण च- चौवीस दण्डकों में स्वयंकृत आयुवेदन चौवीस दण्डकों में—आहार, शरीर, श्वासोच्छ्वास, कर्म, वर्ण लेश्या, वेदना, क्रिया, आयु और उत्पन्न होने का विचार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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