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भगवती-सूची
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श०१ उ०२ प्र० ६८ प " " " दृढकर्म बन्धन,
संवृत अनगार ५८ संवत अनगार का निर्वाण ५६ " " के सिथिल कर्म बंधन.
असंयत जीव ६०-६१ असंयत अव्रत जीवों की देवगति और उसके कारण
व्यंतरदेव ६२ क- व्यंतर देवों के रमणीय देव लोक, ख- ' " की स्थिति द्वितीय दुःख उद्देशक उत्थानिका जीव का स्वयंकृत दुःख वेदन, (एक जीव की अपेक्षा)
" " का कारण ख- चौवीस दण्डकों में ----जीव का स्वयंकृत दु:ख वेदन ६६ जीवों का स्वयंकृत दुःख वेदन (बहुत जीवों की अपेक्षा) ६७ क- जीवों के स्वयंकृत दुःख वेदन का कारण ख- चौवीस दण्डकों में जीवों का स्वयंकृत दुःख वेदन
श्रायुवेदन ६८ क- जीव का स्वयंकृत आयुवेदन, (एक जीव की अपेक्षा)
ख- " " " " " का कारण ग- चौवीस दण्डकों में स्वयंकृत आयुवेदन घ- जीवों का स्वयंकृत आयुवेदन (बहुत जीवों की अपेक्षा) हु.. " " " " का कारण च- चौवीस दण्डकों में स्वयंकृत आयुवेदन
चौवीस दण्डकों में—आहार, शरीर, श्वासोच्छ्वास, कर्म, वर्ण लेश्या, वेदना, क्रिया, आयु और उत्पन्न होने का विचार
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