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________________ श्रु०१ अ०१३ ४४६ ज्ञाता०-सूची ङ- देश आराधक, देश विराधक सर्व आराधक, सर्व विराधक । उपसंहार द्वादशम परिखोदक अध्ययन पुद्गल परिणति ६१ क- उत्थानिका, चंपानगरी, पूर्णभद्र चैत्य, जितशत्रु राजा, धारिणी राणी, युवराज जितशत्रु (अदीन शत्रु,) सुबुद्धि अमात्य, अति दुर्गंधित परिखोदक १२ क- सुबुद्धि अमात्य का परिखोदक को परिष्कृत करवाना तथा राजा को सेवन कराना ख- पुद्गल परिणति का ज्ञापन ग- जितशत्रु राजा को प्रतिबोध. व्रतधारणा घ- स्थविरों का आगमन, जितशत्रु राजा और सुबुद्धि अमात्य की प्रव्रज्या ङ- दोनों का ग्यारह अंग अध्ययन. अनेक वर्षों की श्रमण पर्याय एक मास की संलेखना. दोनों को शिवपद की प्राप्ति त्रयोदशम ददुर अध्ययन सत्संग के अभाव में आत्मगुणों का अपकर्ष ६३ क- उत्थानिका-राजगृह. गुणशील चैत्य ख- भ० महावीर का समवसरण-धर्मकथा ग- दर्दुरदेव द्वारा नाटय प्रदर्शन घ- भ० गौतम की जिज्ञासा. दर्दुर देव का पूर्वभव ङ- महाराज श्रेणिक, नंद मणिकार का धर्म श्रवण. व्रतधारणा च- भ० महावीर का विहार छ- नंद मणिकार को मिथ्यात्व की प्राप्ति ज- अष्टमभक्त तप में प्यास. व्याकुलता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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