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________________ ज्ञता०-सूची श्रु० १ अ० ११ ख- दोनों भाइयों को दक्षिण दिशा के वन खण्ड में जाने का निषेध दोनो भाईयों को पूर्वादि क्रम से दक्षिण दिशा के वन खण्ड में जाना और शूलारोपित पूरुष से वास्तविक स्थिति का ज्ञान प्राप्त होना ८३ क - सेलक यक्ष की उपासना ख- यक्ष पर आरूढ़ दोनों भाईयों का चंपानगरी के लिये प्रस्थान चलचित्त जिनरक्षित पर रयणादेवी का असि प्रहार निर्ग्रथ निर्ऋथियों को जिनरक्षित के समान चलचित्त न होने का भ० महावीर का उपदेश ८२ ८४ ८५ ८६ दृढमना जिनपालित का स्वगृह गमन ८७ क- भ० महावीर का समवसरण जिनपालित का धर्मश्रवण करना प्रव्रज्या लेना. देवभव. महाविदेह से मुक्ति ख- निर्ग्रथ निग्रंथियों को जिन पालित के समान स्थिरचित्त रहने का भ० महावीर का उपदेश । उपसंहार 1 ४४८ दशम चन्द्र अध्ययन आत्मगुणों की वृद्धि ८६ - उत्थानिका ख- कृष्ण एवं शुक्ल पक्ष के चन्द्र की हानि वृद्धि के समान जीव के निज गुणों की हानि वृद्धि । उपसंहार Jain Education International एकादशम दावद्रव अध्ययन जिन मार्ग की आराधना- विराधना ६० क- उत्थानिका ख- उपमा दावद्रव वृक्ष, उपमेय-साधक श्रमणादि ग- उपमा-समुद्र का वायु, उपमेय-अन्यतिर्थी घ- उपमा-द्वीप का वायु, उपमेय-स्वतिर्थी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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