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________________ अ० ८ गाथा ४० ७७२ दशवकालिकसूची २०-२१ दृष्ट और श्रुत के प्रयोग का विवेक और गृहियोग--गृहस्थ की घरेलु प्रवृत्तिओं में भाग लेने का निषेध. २२ गृहस्थ को भिक्षा की सरसता, नीरसता तथा प्राप्ति और अप्राप्ति के निर्देश करने का निषेध. २३ भोजनगृद्धी और अप्रासुक-भोजन का निषेध. २४ खान-पान के संग्रह का निषेध. २५ रुक्षवृत्ति आदि विशेषणयुक्त मुनि के लिये क्रोध न करने का उपदेश. २६ प्रिय शब्दो में राग न करने और कर्कश शब्दों के सहने का उपदेश. २७ शारीरिक कष्ट सहने का उपदेश और उसका परिणाम दर्शन. २८ रात्रि-भोजन परिहार का उपदेश. २६ अल्प लाभ में शांत रहने का उपदेश. ३० पर-तिरस्कार और आत्मोत्कर्ष न करने का उपदेश. ३१ वर्तमान पापके संवरण और उसकी पुनरावृत्ति न करने का उपदेश. ३२ अनाचार को न छिपाने का उपदेश. ३३ आचार्य-वचन के प्रति शिष्य का कर्तव्य. ३४ जीवन की क्षणभंगुरता और भोग-निवृत्ति का उपदेश. ३५ धर्माचरण की शक्यता, शक्ति और स्वास्थ्य-सम्पन्न दशा में धर्माचरण का उपदेश. कषाय ३६ कषाय के प्रकार और उनके त्याग का उपदेश. ३७ कषाय का अर्थ. ३८ कषाय विजय के उपाय. ४० विनय, आचार और इंद्रिय-संयम में प्रवृत्त रहने का उपदेश. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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