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अ०८ गाथा १६
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४०-४२ सावद्य प्रवृत्ति के सम्बन्ध में बोलने का विवेक
४३ विक्रय आदि के सम्बन्ध में वस्तुओं के उत्कर्ष सूचक शब्दों के प्रयोग का निषेध
४४ चिन्तनपूर्वक भाषा बोलने का उपदेश
-४५-४६ लेने बेचने की परामर्शदात्री भाषा के प्रयोग का निषेध ४७ असंयति को गमनागमन आदि प्रवृत्तियों का आदेश देने वाली भाषा के प्रयोग का निषेध
४८ असाधु को साधु कहने का निषेध
४६ गुण सम्पन्न संयति को ही साधु कहने का विधान
५० किसी की जय-पराजय के बारे में अभिलाषात्मक भाषा बोलने का निषेध
५१ पवन आदि होने या न होने के बारे में अभिलाषात्मक भाषा बोलने का निषेध
-५२-५३ मेघ, आकाश और राजा के बारे में बोलने का विवेक
५४ सावद्यानुमोदनी आदि विशेषणयुक्त भाषा बोलने का निषेध -५५-५६ भाषा विषयक विधि निषेध
५७ परीक्ष्यभाषी और उससे प्राप्त होनेवाले फल का निरूपण
अष्टम आचार - प्रणिधि अध्ययन ( प्रचार का प्रणिधान)
दशर्वकालिक सूची
आचार-प्रणिधि के प्ररूपण की प्रतिज्ञा. जीव के भेदों का निरूपण
२
३-१२ षड्जीवनिकाय की यतना-विधि का निरूपण.
१३-१६ आठ सूक्ष्म स्थानों का निरूपण और उनकी यतना का उपदेश
१७-१८ प्रतिलेखन और प्रतिष्ठापन का विवेक.
१६ गृहस्थ के घर में प्रविष्ट होने के बाद के कर्तव्य का उपदेश .
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