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________________ अ० १ उ० १ गाथा १ ७७३ दशवकालिक-सूची ४१ निद्रा आदि दोषों को वर्जने और स्वाध्याय में रत रहने का उपदेश. ४२ अनुत्तर अर्थ की उपलब्धि का मार्ग. ४३ बहुश्रुत की पर्युपासना का उपदेश. ४४-४५ गुरु के समीप बैठने की विधि. ४६-४८ वाणी का विवेक. ४६ वाणी की स्खलना होने पर उपहास करने का निषेध. ५० गृहस्थ को नक्षत्र आदि का फल बताने का निषेध. ५१ उपाश्रय की उपयुक्तता का निरूपण, ब्रह्मचर्य की साधना और उसके साधन. ५२ एकान्त स्थान का विधान, स्त्री-कथा और गृहस्थ के साथ परिचय का निषेध, साधु के साथ परिचय का उपदेश. ५३ ब्रह्मचारी के लिये स्त्री की भयोत्पादकता. ५४ दृष्टि-संयम का उपदेश. ५५ स्त्री मात्र से बचने का उपदेश. ५६ आत्म-गवेषित और उसके घातक तत्त्व. ५७ काम रागवर्धक अंगोपांग देखने का निषेध. ५८-५९ पुदगल-परिणाम की अनित्यता दर्शनपूर्वक उसमें आसक्त न होने का उपदेश. ६० निष्क्रमण-कालीन श्रद्धा के निर्वाह का उपदेश. ६१ तपस्वी, संयमी, और स्वाध्यायी के सामर्थ्य का निरूपण ६२ पुराकृत-मल के विशोध का उपाय. ६३ आचार-प्रणिधि के फल का प्रदर्शन और उपसंहार. नवम विनय-समाधि अध्ययन (प्रथम उद्देशक): (विनय से होनेवाला मानसिक स्वास्थ्य.) १ आचार-शिक्षा के बाधक तत्त्व और उनसे ग्रस्त श्रमण की दशा का निरूपण. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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