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________________ दशवेकालिक सूची २-४ अल्प-प्रज्ञ, वयस्क, या अल्पश्रुत की अवहेलना का फल. · ५- १० आचार्य की प्रसन्नता और अवहेलना का फल उनकी अवहे - लना की भयंकरता का उपमापूर्वक निरूपण और उनको प्रसन्न रखने का उपदेश ७७४ ११ अनन्त - -ज्ञानी को भी आचार्य की उपासना करने का उपदेश. १२ धर्मपद - शिक्षक गुरु के प्रति विनय करने का उपदेश . १३ विशोधि के स्थान और अनुशासन के प्रति पूजा का भाव. १४-१५ आचार्य की गरिमा और भिक्षु परिषद् में आचार्य का स्थान. १६ आचार्य की आराधना का उपदेश. १७ आचार्य की आराधना का फल. १२ १३ १४ १५ अ० ६ उ० २ गाथा १८ १६ १७ १८ १-२ द्रुम के उदाहरण पूर्वक धर्म के मूल और परम का निदर्शन अविनीत आत्मा का संसार भ्रमण. ३ ४ अनुशासन के प्रति कोप और तज्जनित अहित. ५- ११ अविनीत और सुविनीत की आपदा और सम्पदा का तुलनात्मक निरूपण. शिक्षा प्रवृद्धि का हेतु आज्ञानुवर्तिता. गृहस्थ के शिल्पकला सम्बन्धी अध्ययन और नियम का उदाहरण शिल्पाचार्य कृत यातना का सहन. यातना के उपरान्त भी गुरु का सत्कार आदि की प्रवृत्ति का निरूपण. नवम-समाधि अध्ययन (द्वितीय उद्देशक ) ( अविनीत, सुविनीत की आपदा सम्पदा ) Jain Education International धर्माचार्य के प्रति आज्ञानुवर्तिता की सहजता का निरूपण. गुरु के प्रति नम्र व्यवहार की विधि. अविधिपूर्वक स्पर्श होने पर क्षमा-याचना की विधि, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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