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________________ १०६ ११० श्रु०१ अ०२ उ०४ सूत्र ११६ ११६ स्थानांग-सूची ग- द्वेष मूर्छा दो प्रकार की १०७ क- आराधना " ख- धर्माराधना " ग- केवली आराधना १०८ क- दो तीर्थकर नील कमल के समान वर्ण वाले ख- " " प्रियंगु " " पद्मगौर " " " " " चन्द्रगौर " " " . सत्य प्रवाद पूर्व के दो वस्तु हैं क- पूर्वाभाद्रपद्रा नक्षत्र के दो तारे ख- उत्तराभाद्रपदा " " __ ग- पूर्वा फाल्गूनी " " घ- उत्तरा" " " १११ मनुष्य क्षेत्र में दो समुद्र ११२ सातवी नर्क में जाने वाले दो चक्रवर्ती ११३ क- नागकुमार आदि भवनवासी देवों की स्थिति ख- सौधर्म कल्प के देवों की उत्कृष्ट · ग- ईशान " " " " घ- सनत्कुमार " " जघन्य ङ- माहेन्द्र " " " ११४ दो कल्पों में देवियाँ हैं ११५ " " देवों की तेजोलेश्या है के देव काय परिचारक हैं ख- " " " स्पर्श " ग. " "" रूप " घ. " " " शब्द " ह. " "" मन " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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