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श्रु०२, अ०४ उ०१ सू०१३६
आचारांग-सूची भिक्षु अथवा भिक्षुणी के उपकरण मार्ग में चौर छीनें तो उस समय के लिए समाधिभाव रखने का उपदेश तथा
उस समय के लिए कुछ विशेष सूचनाएँ सूत्र संख्या
चतुर्थ भाषा जात अध्ययन
प्रथम वचन विभक्ति उद्देशक १३२ क कठोर वचन और निश्चित वचन का निषेध
सोलह प्रकार के वचनों का विवेक पूर्वक प्रयोग चार प्रकार की भाषा के सम्बन्ध में तीनकाल के
तीर्थकरों की समान प्ररूपणा, भाषा का पौदगलिक रूप १३३ क भाषा का कालिक रूप
सावद्य- यावत्. प्राणियों का घात करने वाली चारों भाषाओं का निषेध असावद्य यावत-प्राणियों का घात नहीं करने वाली सत्य
और व्यवहार भाषा के प्रयोग का विधान १३४ क पुरुष को अप्रिय सम्बोधन करने का निषेध , प्रिय
, विधान ग स्त्रियों ,, अप्रिय
निषेध , प्रिय
, विधान १३५ क आकाश आदि को देव कहने का निषेध
वर्षा धान्य आदि के सम्बन्ध में हो या न हो" ऐसी भाषा के प्रयोग का निषेध
राजा की जय पराजय कहने का निषेध ग आकाशादि के संबन्ध में विवेकपूर्ण भाषा का प्रयोग सूत्र संख्या ४
द्वितीय क्रोधादि उत्पत्ति वर्जन उद्देशक १६६ क रोगी या अंगविकल को कुपित करने वाले वाक्य न कहना
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