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________________ जीवाभिगम-सूची ५६६ ख- यमक पर्वतों पर प्रासाद और प्रासादों की ऊँचाई ग- यमक नाम होने का हेतु दो यमक देव, उनकी स्थिति, उनका देव परिवार घ- यमक पर्वतों की नित्यता सिद्धि ङ - यमका राजधानियों का स्थान १४६ क- उत्तरकुरु में नीलवन्तद्रह का स्थान, आयाम-विष्कम्भ और उद्वेध ख- पद्म का आयाम, विष्कम्भ, परिधि, बाहल्य, ऊंचाई और सर्वोपरिभाग. ग- पद्मकणिका का आयाम - विष्कम्भ परिधि और बाहल्य घ- भवन का आयाम - विष्कम्भ और ऊँचाई ङ - भवन के द्वारों की ऊँचाई और विष्कम्भ च - मणिपीठिका का आयाम विष्कम्भ और बाहल्य छ- देवशयनीय वर्णन. - एक सो आठ कमलों की ऊँचाई आदि - कणिकाओं का आयाम - विष्कम्भ ञ - पद्म का परिवार. सर्व पद्मों की संख्या ट - नीलवंतद्रह नाम होने का हेतु सूत्र १४६-१५१ १५० क - कंचनग पवर्ती का स्थान ख़ की ऊँचाई, उद्बोध, मूल, मध्य और सर्वोपरि भाग का विष्कम्भ ग- प्रासादों की ऊँचाई, विष्कम्भ घ- कंचनग पर्वत नाम होने का हेतु ङ - कंचनग देव, कंचनगा राजधानी च - उत्तरकुरुद्रह का स्थान आदि छ- चन्द्र द्रह, एरावण द्रह, माल्यवन्त द्रह १५१ क- पीठ का स्थान Jain Education International "" For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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