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________________ भगवती-सूची २७७ श०१ उ०८ प्र० २८२ २५२ " " " पितृ मातृ-पितृ अंगों की जीवन पर्यंत स्थिति, २५४ गर्भगत जीव की नरकोत्पत्ति के हेतु-अहेतु २५-२५६ " " "देवलोकोत्पत्ति के " " २५८ क- गर्भगत जीव का शयन उत्थान आदि माता के समान ख- कर्मानुसार प्रसव ग- " प्रशस्त-अप्रशस्त वर्ण, रूप, गंध, रस, स्पर्श आदि अष्टम बाल उद्देशक २५६ एकांत बाल जीव की चार गति में उत्पत्ति २६० एकांत पंडित की दो गति २६१ बाल-पंडित की एक देव गति क्रिया विचार २४२-२६५ मृग-धातक पुरुषको लगनेवाली क्रियाएँ २६६-२६७ आग लगाने वाले को लगने वाली क्रियाएँ २६८-२७१ मृग-घातक पुरुष को लगनेवाली क्रियाएँ २७२-२७४ पुरुष-घातक " " " " वीर्य विचार २७५-२७६ जीव सवीर्य भी है, अवीर्य भी है २७७-२७६ चौवीस दण्डक के जीव सवीर्य भी है और अवीर्य भी नवम गुरुत्व उद्देशक २८० जीव का गुरुत्व और उसके कारण २८१ जीव का लघुत्व और उसके कारण २८२ क- जीव की संसार वृद्धि और उसके कारण " " हानि " " लम्बा होना" घ. " " " नोमान " " " - " " " भ्रमण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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