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________________ श०१ उ०७ प्र० २५१ २७६ भगवती-सूची २३३ स्नेहकाय २२८-२३० स्नेह काय का पतन और अवस्थिति सप्तम नैरयिक उद्देशक २३१ चौवीस दण्डक में उत्पाद चतुर्भगी २३२ , , ,, आहार ,, उद्वर्तन ,, २३४ , , ,, आहार , २३५ क- , , , उपपन्न । ख- ,, ,, ,, आहार , २३६ , , ,, उत्पद्यमान ,, विग्रह गति २३७ चौवीस दण्डकों में विग्रह गति और अविग्रह गति २३८ जीव विग्रह गति प्राप्त भी हैं, और अविग्रह गति प्राप्त भी हैं २३६ उन्नीस दण्डकों में विग्रह गति और अविग्रह प्राप्त की चोभ गी श्रागामी भव के आयुष्य का अनुभव २४० महद्धिक देव च्यवन समय से पूर्व तिर्यंचायु या मनुष्यायु का अनुभव करता है गर्भ विचार २४१-२४२ गर्भ में उत्पन्त जीव अपेक्षाकृत सेन्द्रिय और अनिन्द्रिय २४३-२४४ " " " " सशरीरी और अशरीरी का सर्व प्रथम आहार " " " " आहार २४७ " स्थित " के मलमूत्रादि का अभाव " " आहार का परिणमन ___ " २६७-२४६ " " " कवलाहार का अभाव २५१ गर्भस्थ जीव के मातृ अंग २४५ २४६ २४८ " , Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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