SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 303
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती-सूची २७५ २१० क्रिया सदा ( तीन काल में ) अनुक्रमपूर्वक कृत है २११-२१४ उन्नीस दण्डकों में प्राणातिपात क्रिया । प्रश्नोत्तर २०६ से २१० के समान २१५ २१६ २१७ क ख ग घ २१८ २१६ २२० २२१ २२२ क ख २२३ २२६ २२७ चौवीस दण्डकों में प्राणातिपात यावत् - मिथ्यादर्शन शल्य भ० महावीर और आर्यरोह भ० महावीर से आर्यरोह के ८ प्रश्न पूर्व या पश्चात् लोक- अलोक पूर्व या पश्चात् जीव - अजीव "" "" 11 11 " 11 17 17 21 77 " 3) 31 Jain Education International "" 33 11 " 27 सप्तम तनुवात सप्तम घनवात प्र० २२०-२२१ के समान ( तीन काल में समान ) लोक स्थिति 32 २२४-२२५ क- आठ प्रकार की लोकस्थिति ख- मशक का उदाहरण जीव और पुद्गल श०१ उ०६ प्र० २२७ भवसिद्धिक- अभवसिद्धिक सिद्ध-असिद्धि सिद्ध-असिद्ध अंड कुर्कुटी लोकांत-अलोकांत लोकांत - सप्तम अवकाशांतर आदि लोकांत-सर्वकाल अलोकांत के साथ २२०-२२१ के समान सप्तम अवकाशांतर सप्तम तनुवात प्र० २२०-२२१ के समान जीव और पुद्गल का सम्बन्ध सछिद्र नाव का उदाहरण For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy