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________________ पद १० सूत्र ३-१६ ६४६ प्रज्ञापना-सूची विकल्प द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से रत्नप्रभादि सात पृथ्वियाँ सौधर्म-यावत्-अनुत्तर विमान, ईषत्प्राग्भरा और लोक के चरमादि ६ विकल्पों का अल्प-बहुत्व द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से अलोक के चरमादि ६ विकल्पों का अल्प-बहुत्व द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से लोकालोक के चरमादि ६ विकल्पों का अल्पबहुत्व परमाणु पुद्गल के चरमादि तीन विकल्पों के छब्बीस भांगे ७-१३ क- द्विप्रदेशिक स्कन्धों-यावत्-अनन्त प्रदेशिक स्कन्धों के चरमादि तीन विकल्पों के भागे ख- भंग संख्या सूचक ६ गाथा १४ पांच संस्थानों के नाम १५ क- परिमण्डलादि पाँच संस्थान अनन्त ख. परिमण्डलादि पाँच संस्थानों के संख्यात प्रदेश-यावत-अनन्त प्रदेश ग- पाँच संस्थान संख्यात प्रदेशावगाढ़-यावत्अनन्त प्रदेशावगाढ़ १६-१८ द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा संख्यात प्रदेशावगाढ़-यावत् अनन्त प्रदेशावगाढ़ पांच संस्थानों के चरमाचरम का अल्प-बहुत्व जीव चरमाचरम' १६ क- चौवीस दण्डक के जीव या जीवों का गति की अपेक्षा चरमा चरम का स्थिति की अपेक्षा चरमा चरम १. चरम-जिसका अन्त है । अचरम---जिसका अन्त नहीं है २. एक वचन ३. बहुवचन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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