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________________ ३-४ उ० ४ सूत्र १२ ८६४ व्यवहारसूत्र-सूची क- तरुण निर्ग्रन्थ को आचार्य-उपाध्याय की मृत्यु के पश्चात् अन्य आचार्यउपाध्याय की निश्रा-आधीन रहना ख- तरुण निर्ग्रन्थी को उपरोक्त प्रकार से रहना साथ ही प्रवर्तिनी की निश्रा में रहना १३-२२ मैथुन सेवी भिक्षु और प्रमुख पद २३-२६ मृषावादी भिक्षु और प्रमुख पद चतुर्थ उद्देशक विहार-मर्यादा १-२ हेमन्त और ग्रीष्म में आचार्य-उपाध्याय का एक अन्य निग्रंथ सहित विहार गणावच्छेदक का दो अन्य निग्रंथ सहित विहार वर्षावास-मर्यादा ५.६ दो अन्य निग्रंथ सहित आचार्य-उपाध्याय का वर्षावास तीन अन्य निग्रंथ सहित गणावच्छेदक का वर्षावास संघ सम्मेलन हेमन्त और ग्रीष्म में क. ग्राम-यावत्-सन्निवेश में सम्मिलित अनेक-आचार्य उपाध्यायों का हेमन्त और ग्रीष्म में एक-एक निर्ग्रन्थ सहित रहना ख- गणावच्छेदकों को दो दो निग्रन्थों के साथ रहना वर्षावास में--- १० क- ग्राम यावत्-सन्निवेश में आचार्य-उपाध्यायों का दो दो निर्ग्रन्थों सहित वर्षावास ख- गणावच्छेदकों का तीन तीन निर्ग्रन्थों सहित वर्षावास ११-१२ प्रमुख निर्ग्रन्थ की मृत्यु के पश्चात् प्रमुख पद क- हेमन्त और ग्रीष्म में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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